शनिवार, 28 जून 2014

जश्न-ए-हिज्र


















ऐ दोस्त आ ! मिलकर मनाएं जश्न-ए-हिज्र 
सेहरा-ए-जिंदगी को अश्कों से समंदर कर दें !!



सु-मन 

12 comments:

Vaanbhatt ने कहा…

बहुत खूब...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया वाणभट्ट जी

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत खूब

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

धन्यवाद

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हुनर की कीमत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Asha Joglekar ने कहा…

क्या बात है। बहुत सुदर।

Mahesh Barmate "Maahi" ने कहा…

बहुत खूब

उम्मतें ने कहा…

विरह के उत्सव आयोजन और सहराँ को समंदर कर देने की ख्वाहिश / आह्वान में, एक टीस / एक आर्तनाद / एक बेबस फ़रियाद भी छुपी है...और खो देने के गहन क्षण में हौसले की नन्हीं किरण भी ! सुंदर लेखन !

कविता रावत ने कहा…

आँखों से छलकते समुन्दर में डूबकर मन व्याकुल हो उठा!
बहुत खूब!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अच्छा है ।
समुंदर बने तो अच्छा है
जहाज बनाने वालों
की भी कुछ चलेगी :)

Satish Saxena ने कहा…

bahut sunder !

Onkar ने कहा…

वाह

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