शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

पहचान
















आईना रोज़ ढूँढता है मुझमें मेरी पहचान 
मैं देख कई अक्स अपने सोच में पड़ जाता हूँ !!

सु-मन 

5 comments:

कविता रावत ने कहा…

बहुत खूब!

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

waah

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब ...

जसवंत लोधी ने कहा…

काश गर हम आईने होते ।
हमारी सूरत मे देखती 'नारीयॉ अपनी मूरत'
हम खीचते सुंदर सूरतो का अक्स ।
हम एसे नक्शा नफीज होते ।काश गर---------------

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खुद से खुद की पहचान भी आइना करवा देता है ...

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