रविवार, 19 अप्रैल 2015

बीती शाम

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भरा भरा पर खाली खाली (घर की छत से दिखता आसमां)

















बीती शाम
हवा ने एक चुटकी काटी
और नम पलकों से
चुरा ले गई कुछ बूँदें
खुश्क आँखें देखती रही
उन्हें जाते , दूर कहीं
बाद इसके –
आसमां के ज़िस्म से
उतरने लगा लिबास कोई
रूह मेरी
देर तक पैरहन एक सिलती रही !!


सु-मन 











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