शनिवार, 3 दिसंबर 2016

तुम और मैं -५



जानती हूँ तुम नहीं हो ..

ख़ामोशी तुम तक पहुँचने का मेरा पसंदीदा एकमात्र विकल्प है !!

सु-मन 

7 comments:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

नहीं होने के पास होने का पहुँचना
कुछ नहीं से सब कुछ हो जाने के लिये ।

M VERMA ने कहा…

खामोशी कब खामोश होता है

कविता रावत ने कहा…

ख़ामोशी की अपनी एक अलग ही भाषा है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-12-2016) को "ये भी मुमकिन है वक़्त करवट बदले" (चर्चा अंक-2546) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ख़ामोशी कभी कभी चीख़ती भी है ...

Unknown ने कहा…

bahut khoob suman ji , khamoshi bina kahe bahut kuch keh jaati hai

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