शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

उम्मीद

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चल उम्मीद के तकिये पर 
सर रख कर सोयें 
ख़्वाबों में बोयें 
कुछ जिन्दगी 
क्या मालूम सुबह जब 
आँख खुले 
हर उम्मीद हो जाये हरी भरी !!


सु-मन 
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