रविवार, 8 अगस्त 2010

टिप्पणी देना भी एक कला है ।

टिप्पणी देना भी एक कला है ।जिस तरह अपने विचारों , अपने मन के भावों को शब्दों में पिरोकर हम लिखते हैं वो हमारी अपनी अनुभूती होती है अपने विचारों के प्रति ..वो विचार जो धीरे धीरे मानसपटल पर विचरते हुए लेखनी से कोरे कागज में रंग भर देते हैं ।उसी तरह हमारे भावों का प्रतिरूप हमें टिप्पणियों के रूप में मिलता है जो हमारे लेखन को सार्थक बना देता है ,हमारे लेखन की रंगत को और बढ़ा देते हैं । सच में ये महसूस करने की बात है कि कुछ ब्लॉगर बहुत अच्छी टिप्पणी करते हैं अच्छी से मेरा मतलब प्रशंसा करने वाली टिप्पणियों से नहीं है बल्कि सकारात्मक दिशा में ले जाने वाली से है। कभी कभी पोस्ट पर टिप्पणियों का प्रभाव हावी लगता है।मुझे खुद महसूस हुआ है कि टिप्पणी से मिले सुझाव आपके लेखन को नया आयाम देते हैं क्योंकि कभी कभी ऐसा होता है कि हम अपना 100% नहीं दे पाते चूक हो जाती है । कभी समय का अभाव ,कभी शब्दों की अभाव और हम अपने लेखन का विश्लेषण नहीं कर पाते ,तब ब्लॉगर मित्रों द्वारा दिये गये सुझाव आत्मविश्लेषण करवाते हैं कहां क्या चूक हो गई इसका आभास होता है और सृजनशीलता को नया आयाम मिलता है।मैने शुक्रगुजार हूँ आप सभी की जिन्होनें मेरे लेखन को सराहा और उचित सुझाव देकर मेरा मार्गदर्शन किया !!





सु-मन 

22 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

सच कहा आपने ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

sahi hai. Achchhi Tippni bhi protsahit karati hai.lekhak ka manobal badhati hai.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुमन जी ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद । आते रहें , निराश नहीं होंगी , यह मेरा विश्वास है ।

टिप्पणियों के बारे के आपने सही कहा , इनका अपना महत्त्व है । हालाँकि सभी टिप्पणियां सारगर्भित नहीं होती । फिर भी स्वागत तो रहता है ।

Ravi Kant Sharma ने कहा…

सच लिखा है आपने लेख के द्वारा
या टिप्पणी के द्वारा दोनों से व्यक्ति
की मनस्थिति शब्द रुप में प्रकट होती
हैं, और दोनों से ही प्रेरणा मिलती है।
पहली बार मेरे ब्लाग पर आने पर
आपकी सुन्दर भावनाओं का स्वागत है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

इस कला में हम पारंगत नही हैं!

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

sumn ji aapke git kaa raag tipppniyon ke baare me sunaa bhut khubsurt surilaa dil ki ghraiyon ko chune vaala he aap ne shi khaa ke agr hm is desh men ab nyaa itihaas nya saahity chintn mnthn pedaa krnaa chaahte hen to jo log is kaam men lge hen un adhure logon ko apne sujhaavon yaani tippniyon se smpurn krne ki koshish kren yeh smaj aek dure ke binaa adhuraa he isliyen aek dure ko sudhaarne ke liyen aek dusre ki mdd or sijaavon ki zrurtr hoti he or achche logon ki hoslaa afzaayi bhi hoti he aap pehli lekhikaa hen jisne is khaaas zruri mudde ko chuvaa he jo aaj ke haalaaton ki khaas zrurt he vese bhi zmzznaa is hath den or is haath lene ka bn gyaa he to jo tippniyaa degaa voh tippniyaa paayegaa isse aek dure ko to faaydaa he hi saath hi smaaj,saahity,desh sbhi ko faaydaa hogaa . akhtar khan akela kota rajsthan

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

दराल जी
आपने ठीक कहा तभी तो मैने कुछ ब्लॉगर लिखा है ...........

Udan Tashtari ने कहा…

बात तो बिल्कुल सही कही है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक बात कही है ....टिप्पणियाँ जहाँ प्रोत्साहित करती हैं तो कभी कभी हतोत्साहित भी करती हैं ..लेकिन यदि कोई सुझाव सही हो उसे मान्यता देनी चाहिए ....

Arvind Mishra ने कहा…

कभी कभी तो लगता है की टिप्पणी देने वाले का औत्तार्दायित्व मूल पोस्ट लेखक से भी अधिक होता है -यहाँ तक कि-
मूकम करोति वाचालं ,पंगु लंघयते गिरिम ....

निर्मला कपिला ने कहा…

सहम्त हूँ शायद पहली बार आपका ब्लाग देखा है। बहुत अच्छा लगा। शुभकामनायें

ओशो रजनीश ने कहा…

सही कहा आपने टिपण्णी देना भी और पाना भी एक कला है .... यहाँ भी आइये कुछ लिखा है अच्छा लगे तो अपनी कला का प्रदर्शन कीजिये . http://oshotheone.blogspot.com

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bilkul sach kaha apne............bahut baar aisa bhi hota hai, ham bina padhe hi tippani de dete hain.................:D, hota hai na.........

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सभी लोग टिप्पणियां सोच समझ कर नहीं देते इसलिए देते हैं क्यूँ के देनी होती हैं...आप ने सही कहा अगर टिपण्णी अच्छे से पढ़ कर सोच समझ कर दी जाए तो लेखक को अपनी रचना को सुधारने में बहुत मदद मिलती है...

नीरज

Deepak Shukla ने कहा…

सुमन जी....
शुभ अपरान्ह...

कई दिन से आपका ब्लॉग खोलने के लिए प्रयत्नशील हूँ पर जाने क्या तकनीकी खामी है की ये हंग हो जाता है...और हमें बिना टिपण्णी दिए ही रह जाना पड़ता है....खैर,....लोग कहते हैं " जब जब जो जो होना है, तब तब सो सो होता है" सो शायद ये आज ही होना बदा था...

आपका कहना सही है....मित्रों के सुझाव/टिप्पणियां और मार्गदर्शन हमें अपने लेखन में सुधर लाने में मदद करते हैं... और ये बात सिर्फ ब्लॉग की दुनिया से ही नहीं है बल्कि जीवन में हर आयाम में हमें अपने सुधार के लिए मार्गदर्शन की अव्शयाकता पड़ती है...बस अपने विवेक के तराजू पर तौल तौल के सलाहों को आजमाना है और धीरे धीरे जीवन पथ पर बढ़ते जाना है....

बहुत ही सार्थक और सामयिक पोस्ट....

मेरी ईश्वर से प्रार्थना है आप सदा यूँ ही लिखती रहें...सार्थक लिखती रहें....

शुभकामनाओं सहित...

दीपक...

SATYA ने कहा…

सही कहा आपने...

रचना दीक्षित ने कहा…

आपने बिलकुल सही फ़रमाया. टिपण्णी कैसी भी हो इंतज़ार तो हमेशा रहता है. जो मजा हाल में तालियों की गडगडाहट का है ब्लॉग में टिपण्णी का है

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सौ फ़ीसदी सच्ची बात.

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

आप ने सही कहा अगर टिपण्णी अच्छे से पढ़ कर सोच समझ कर दी जाए तो लेखक को अपनी रचना को सुधारने में बहुत मदद मिलती...

manu ने कहा…

अब जैसे ये मुस्कान भी टिपण्णी ही है.....कितनी गहरी है..ये तो वही बता सकता है जिसकी ये मुस्कान है..


:)

राजेश उत्‍साही ने कहा…

दीपक शुक्‍ला जी ने जिस समस्‍या का जिक्र किया वह मेरे ख्‍याल से इसलिए होती है कि क्‍योंकि सुमन जी के ब्‍लाग का टेम्‍पलैट लोड होने में बहुत समय लेता है। सुमन जी से अनुरोध है कि इस पर विचार करें,और इसे थोड़ा हल्‍का बनाएं।
बहरहाल टिप्‍पणी देना तो निसंदेह एक कला है, पर टिप्‍पणी को सकारात्‍मक रूप में लेना उससे बड़ी कला है।

Suman ने कहा…

sach kahati hai aap tippani dena bhi yek kala hai. jo sabko nahi aati.

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