सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा नहीं ...............................................................
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे -2
मेरी ख़ता मेरी वफा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा नहीं .............................................................
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर -2
भेजा वही कागज उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा नहीं ..............................................................
इक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक -2
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा नहीं ...............................................................
बशीर बद्र
10 comments:
thanku veru much to share this song...
itz awesome..
मेरी भी दो पोस्ट पर नज़र डालें...
ज़िन्दगी अधूरी है तुम्हारे बिना ....
सुनहरी यादें ....
मेरी फेवरिट गजल, सुनवाने का शुक्रिया।
................
..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?
शानदार!!!शानदार
भेजा वही कागच उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
वाह...!
गज़ब लिखते हैं बशीर जी भी .....!!
मस्त है ये ग़ज़ल ... और जगजीत जी की आवाज़ .....
बहुत अच्छी गज़ल कई दिन बाद सुनी। धन्यवाद। दीपावली की शुभकामनायें।
मेरी पसंदीदा गजल सुनान वास्ते तुसां दा धन्यवाद जी... बडा अच्छा लगदा जदी कोई अपने पासे दा नेट पर मिली जांदा.... लिखदे रेया
bahut hee shandar gazal se rubroo karwane ke liye dhnyabad
बशीर बद्र साहब द्वारा रचित जगजीत साहब की आवाज़ में अच्छी ग़ज़ल सुनाने के लिये अभार।
dil khush ho gaya padhkar
सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं
मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं
किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है "क़तील"
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं
क़तील शिफा
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