रविवार, 17 नवंबर 2013

इबादत का सिला
















मेरी इबादत का मिला ये सिला मुझको 

खुदा बन के 'मन' अब वो पत्थर हो गया ।।




सु-मन



10 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गढ़ सको तो कोई मूर्ति गढ़ लो
कर दो प्राण-प्रतिष्ठा
पत्थर मौन होकर भी मौन नहीं होते

...shabab khan ने कहा…

*
"बहुत डाला समन्दर मेँ शहद हमनेँ,
कमब्ख़त खारा का खारा ही रहा ।" *

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... बनी रहेगी ये मूरत उम्र भर के लिए अब ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut Sunder

Vaanbhatt ने कहा…

जाऊं बुतखाने से क्यों काबे को मैं,
हाथ से ये भी ठिकाना जायेगा...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत सुन्दर...
:-)

Udan Tashtari ने कहा…

आह!!

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुन्दर .

Aparna Bose ने कहा…

बहुत दर्द झलकता है इस शेर में। … खूबसूरत

Ramakant Singh ने कहा…

YAHI HO JATA HAI

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