शनिवार, 22 मार्च 2014

सु-मन की पाती















ऐ मेरे दोस्त..लफ्ज़
                                                          सुबह से लेकर शाम तक की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारावास में भूत के बिछौने पे अधलेटी से स्मृतियाँ हैं । वर्तमान की दीवार पर छत से सटे हुए इकलौते रोशनदान से बाद दोपहर भविष्य के धूमिल कण झिलमिलाते हैं । सलाखों के उस पार अनेक रोशनियाँ हैं जिनमें अनेक रंगीनियाँ हैं सतरंगी इन्द्रधनुष से महकता खुला आकाश और इस पार मैं हूँ उस रोशनदान से दिखता मेरा सिमटा आकाश के जिसमें एक नहीं अनगिनत इन्द्रधनुष दिखते हैं मुझको और मुझे सराबोर कर देते हैं अपनी महक से और खिल उठती हूँ मैं सुमन सी जब तुम मुझमे समाहित हो उतर आते हो पन्नों पर । मुझे ये कारावास प्रिय है और तुम्हारा सानिध्य भी !!

                                                                                                                   सु-मन

9 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गहरे एहसास

Ranjana verma ने कहा…

बहुत सुंदर भाव....

Meena C hopra ने कहा…

कहीं ये मृगतृष्णा तो नहीं। सुंदर भाव.

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

Nice

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर अहसास.
नई पोस्ट : कुछ कहते हैं दरवाजे

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर भाव ...!

RECENT POST - प्यार में दर्द है.

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति। सुंदर अहसास.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह...बहुत उम्दा पोस्ट...
नयी पोस्ट@चुनाव का मौसम

राहुल ने कहा…

तारीफ़ क्या करूँ ? एक-एक शब्द ह्रदय में डूब गया है....

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