शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

भीगा सावन














(ऑफिस जाते हुए सावन का नज़ारा )

भीगा भीगा सा है मौसम 
भीगी भीगी सी रुत बहार है 
भीगा भीगा सा है 'मन' मेरा 
भीगी भीगी सी सावन की फुहार है !!


सु-मन 

23 comments:

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया

राजीव कुमार झा ने कहा…

सुंदर.

Vaanbhatt ने कहा…

ऐसे में क्यों हम दीवाने हो जाएँ ना...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

waah ..bahut sundar ....

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

धन्यवाद

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया निशा जी

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति , आ. धन्यवाद !
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संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में


फुर्सत मिले तो .शब्दों की मुस्कुराहट पर आकर नई पोस्ट जरूर पढ़े....धन्यवाद :)

Pratibha Verma ने कहा…

बेहतरीन...

Unknown ने कहा…

वाह

Satish Saxena ने कहा…

वाह !! मंगलकामनाएं आपको !

राहुल ने कहा…

तस्वीर सब कुछ बयां कर रही है....

M S Mahawar ने कहा…

Bahoot Khoob..

http://www.meapoet.in/

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर ....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहद उम्दा सामयिक रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें....

Onkar ने कहा…

सुंदर पंक्तियाँ

virendra sharma ने कहा…

सुन्दर शब्दचित्र मन :भाव स्थिति

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

आपके पोस्ट के लिंक
https://www.facebook.com/groups/605497046235414/ .... यहाँ है .... आप भी आयें

Suman ने कहा…

हाय ! कितना खुशगंवार है आपके यहाँ का मौसम
हमारे यहाँ तो बिलकुल इसके विपरीत है :)
सुन्दर रचना !

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

वाह सावन का सुन्दर दृश्य दिखा दिया आपने बधाई।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

बहुत सुन्दर ... दृश्य भी बहुत सुन्दर

virendra sharma ने कहा…

मृत्यु और जीवन दो दरवाज़े हैं जीवात्मा एक दरवाज़े से निकल कर दूसरे में प्रवेश करता है। अंतकाल में व्यक्ति जो सोचता है उसी को प्राप्त होता है जो कृष्णभावना अमृत में रहता है वह वैकुण्ठ को जाता है उसके लिए यह अंतिम मृत्यु यानी परान्तकाल साबित होती है। सुन्दर पोस्ट।

प्रेम सरोवर ने कहा…

रचना मन के भावों को दोलायमान कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।

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