रविवार, 19 अप्रैल 2015

बीती शाम

भरा भरा पर खाली खाली (घर की छत से दिखता आसमां)

















बीती शाम
हवा ने एक चुटकी काटी
और नम पलकों से
चुरा ले गई कुछ बूँदें
खुश्क आँखें देखती रही
उन्हें जाते , दूर कहीं
बाद इसके –
आसमां के ज़िस्म से
उतरने लगा लिबास कोई
रूह मेरी
देर तक पैरहन एक सिलती रही !!


सु-मन 











12 comments:

सहज साहित्य ने कहा…

मन को छू गई आपकी एक -एक पंक्ति ! हार्दिक बधाई सुमन जी !!

Hemant ने कहा…

Sumanji...aapki kavitaye bahut hi sundar hoti hain!!
Bravo!!!

बेनामी ने कहा…

beautiful :)

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर ।

Sadhana Vaid ने कहा…

वाह ! बहुत ही सुन्दर ! कितना नाज़ुक सा ख़याल है ! क्या कहने !

रचना दीक्षित ने कहा…

मन के बहुत करीब से गुजरती हुई पंक्तिया

Manoj Kumar ने कहा…

अच्छी पोस्ट आभार

Kailash Sharma ने कहा…

दिल को छूती बहुत ख़ूबसूरत रचना..

Shekhar Suman ने कहा…

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.... ;)
वैसे आज तक ये समझ नहीं आया कि हर ब्लॉग कि प्रस्तुति इतनी अच्छी कैसे हैती है.... ब्लॉगिंग के सुनहरे दिन...

राहुल ने कहा…

badhiya post...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरे असर करने वाले शब्द ... बहुत उम्दा ...

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

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