अभी हाल ही में एक पारिवारिक यात्रा करके आई हूँ और आप सब से उसका अनुभव साझा करना चाहती हूँ ।
मंडी से करीब 80 कि.मी. की दूरी पर एक जगह है बैजनाथ जो शिमला पठानकोट मार्ग के बीच में आती है ।वहां से करीब 3 कि.मी. लढ़भड़ोल मार्ग पर जाने पर एक धार्मिक स्थल है ‘ महाकाल’ ।काफी बड़े परिसर में फैले इस स्थल में 3 मन्दिर हैं जिसमें एक स्वयंभू शिवलिंग का प्राचीन मन्दिर है और एक दुर्गा माता का ।तीसरा मन्दिर शनि देव का है जिसके 12 स्तम्भ हैं जिन पर 12 राशियां अंकित हैं ।काले ग्रेनाइट से बने इस मन्दिर की छटा देखते ही बनती है । हमने देखा कि उन स्तम्भों पर लाल डोरी (मौली) बान्धी गई है तो मन में उससे सम्बन्धित बातें जानने की इच्छा हुई । पुजारी के अनुसार अपनी राशि वाले स्तम्भ पर डोरी बान्धने से अनिष्ट ग्रहों की शांति होती है ।वहां अभिलेख पर लिखे शब्दों के अनुसार प्राचीन में जालन्धर नामक समुद्र पुत्र दैत्य भगवान शिव का अनन्य भक्त था जिसने कठिन तप से शिव से मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था परंतु काल पर विजय प्राप्त करके अंहकार वश उसने ऋषि मुनियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया तब देव अनुरोध पर भगवान शिव ने महाकाल रूप धारण कर उस दैत्य का वध किया था।तब से यह महाकाल के नाम से प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि पहले यहाँ हर रोज एक चिता जरूर जलती थी जिसमें रोज कोई चिता न हो तो वहां घास का (पुला) गठ्ठा जलाया जाता था।
भगवान शिव के बहुरूप के दर्शन कर आत्मिक शांति का अनुभव होता है एक ओर जहाँ ये भोले बाबा है जो भक्ति से जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं वहीं दूसरी ओर रूद्र देव भी जो दुर्जनों का नाश करने के लिये काल देवता ‘महाकाल’ बन जाते हैं ..............
मंदिर का परिसर
मेरे भांजे और भांजी
शनि देव की मूर्ति
स्तम्भ पर राशि
मंदिर के दर्शन
स्वयभू शिवलिंग
दुर्गा माता
प्राचीन शिव मंदिर
सोचा अपने ग्रहों की शांति भी कर ले (मेरी मम्मी )

शनि देव की शिला जहाँ तेल ,तिल,माह चढ़ाये जाते हैं
धूप बहुत थी छाया कम
मेरी बड़ी दीदी और बच्चे
एक दूसरे की ओर मुह किये भगवान् शिव और दुर्गा के प्राचीन मंदिर
आज भी एक चिता जला रही थी
शनि देव की छत्रछाया में हमारा परिवार
मंदिर में बना जल कुंड
प्रकृति के नज़ारे
बच्चों की मस्ती
मेरे पापा ,बच्चे ओर ड्रावर
रोज की भागदौड़ भरी जिन्दगी से कुछ राहत
मेरी मम्मी ,छोटी दीदी .बच्चे (एक मित्र )
मस्ती का आलम
घर की तरफ वापसी .............................