आज इंसान कितना अवसरवादी हो गया है ।हर कोई बस दूसरे को नीचा दिखाने की फिराक में है । आज के इस अन्धे युग में इंसान अपनी इंसानियत तक भूल गया है हर कोई बस अन्धी दौड़ में भागे जा रहा है बिना ये जाने कि वो राह उसकी मंजिल तक जाती भी है या नहीं । उसे ये सोचने की फुर्सत ही कहाँ है वो तो बस ये देखता है कि दूसरा आगे जा रहा है और मैं उसे पीछे कैसे धकेल सकता हूँ ।बस यही सोच रह गई है इंसान की।अपनी इस सोच से वो अपनी मंजिल की राह भी भटक जाता है क्योंकि अपनी मंजिल की राह में तो उसने कदम बढ़ाया ही नहीं होता वो तो बस दूसरों की राहों मे नजरें लगाए रहता है कि कब दूसरा आदमी कदम बढ़ाए और मैं उसकी राह में रोड़े डाल दूँ।मन बहुत खिन्न होता है जब भी ऐसे लोगों को देखती हूँ ।हमारे सभ्य समाज की सोच कितनी बदल गई है शिक्षा तो इंसान के जीवन में नई क्रांति लाती है उसके सोच के दायरे को बढ़ाती है ना कि उसे इतना संकीर्ण बना देती है कि उसे बोध ही नही होता कि कांटे बो कर कभी भी फूल नहीं खिला करते।
मुझे याद है हिन्दी की कहावतें
*लालच बुरी बला है ।
*ईमानदारी सबसे बड़ी नीति है ।
*भगवान भी उनका भला करते हैं जो अपना भला आप करते है।
परंतु अवसरवादी इंसान के लिये कहावतें कुछ इस तरह होनी चाहिये
*अवसरवादी होना भी एक कला है ।
*बैमानी सबसे बड़ी नीति है ।
*भगवान भी उनकी सहायता करते हैं जो दूसरों का बुरा हाल करते हैं ।
सु-मन