कहते हैं जीवन में एक ध्येय लेकर चलना चाहिये एक लक्ष्य लेकर, ताकि जीवन में कुछ मुकाम हासिल कर सको , कुछ हो आखिर में जो तुम्हारे जीवन की पूंजी होगी जीवन के अंतिम पड़ाव में तुम्हें लगे कि जीवन में जो सोचा वो कर लिया । पर क्या इंसान इस सोच के साथ ज्यादा समय टिक पाता है..क्या आखिर में वो तृष्णा रहित हो जाता है , क्या उसका चंचल मन ठहर जाता है..वो शून्य मे लीन हो पाता है , शायद नहीं इंसान की इच्छाओं की पूर्ति कभी नहीं होती। एक कड़ी है बस जो हर इच्छा को..हर अभीप्सा को..हर चाह को एक दूसरे से जोड़े है एक की पूर्ति दूसरे के होने का सबब बन जाती है बस और कुछ नही होता । भावों का ताना बाना बुनता मन जकड़ लेता है अपने जाल में और हम बस देखते रहते हैं उसके बुने मायाजाल को जो नशवर है..क्षणिक है..एक तीव्र हवा का झोंका उसे नष्ट कर देगा , उसका अस्तित्व मिटा देगा । तो क्या वो ध्येय..वो लक्ष्य.. भी उसके मन की ही उपज नहीं ,एक दबी सी चाह नहीं जो सारी उम्र इंसान का पीछा नही छोड़ती..हर क्षण उसे जकड़े रहती है अपने बाहुपाश में !!
सु-मन
सु-मन