आज इंसान कितना अवसरवादी हो गया है ।हर कोई बस दूसरे को नीचा दिखाने की फिराक में है । आज के इस अन्धे युग में इंसान अपनी इंसानियत तक भूल गया है हर कोई बस अन्धी दौड़ में भागे जा रहा है बिना ये जाने कि वो राह उसकी मंजिल तक जाती भी है या नहीं । उसे ये सोचने की फुर्सत ही कहाँ है वो तो बस ये देखता है कि दूसरा आगे जा रहा है और मैं उसे पीछे कैसे धकेल सकता हूँ ।बस यही सोच रह गई है इंसान की।अपनी इस सोच से वो अपनी मंजिल की राह भी भटक जाता है क्योंकि अपनी मंजिल की राह में तो उसने कदम बढ़ाया ही नहीं होता वो तो बस दूसरों की राहों मे नजरें लगाए रहता है कि कब दूसरा आदमी कदम बढ़ाए और मैं उसकी राह में रोड़े डाल दूँ।मन बहुत खिन्न होता है जब भी ऐसे लोगों को देखती हूँ ।हमारे सभ्य समाज की सोच कितनी बदल गई है शिक्षा तो इंसान के जीवन में नई क्रांति लाती है उसके सोच के दायरे को बढ़ाती है ना कि उसे इतना संकीर्ण बना देती है कि उसे बोध ही नही होता कि कांटे बो कर कभी भी फूल नहीं खिला करते।
मुझे याद है हिन्दी की कहावतें
*लालच बुरी बला है ।
*ईमानदारी सबसे बड़ी नीति है ।
*भगवान भी उनका भला करते हैं जो अपना भला आप करते है।
परंतु अवसरवादी इंसान के लिये कहावतें कुछ इस तरह होनी चाहिये
*अवसरवादी होना भी एक कला है ।
*बैमानी सबसे बड़ी नीति है ।
*भगवान भी उनकी सहायता करते हैं जो दूसरों का बुरा हाल करते हैं ।
सु-मन
11 comments:
आज के परिवेश में ऐसे भाव आने स्वाभाविक हैं ...
कभी तो इस पर ही विश्वास हो चलता है.
बिलकुल सही कहा आपने ....ये बदलते वक्त का इंसान है ....जो सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है ....
bilkul sahi kaha aapne....
lekin kya karein yeh awsarwadita shayad ab hamari jaroorat banti ja rahi hai....
iske bagair zindagi bahut kathin ho jayegi....
sahi kaha aapne
सब आज शोर्टकट से ऊपर चढ़ना चाहते हैं और ये दूसरे के पैर के निचे की सीढ़ी कहीं खुद के लिए इस्तेमाल करना इन अवसरवादियों को सबसे सुलभ लगता है.
आज के हालात पर सही चिंतन.
सुंदर अभिव्यक्ति.
..किसी शायर ने लिखा है..
यहाँ किसी का कोई साथ नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो.
कठिन है राहगुजर जो चल सको तो चलो.
bahut khoob....bilkul sahi baaton ko darshaaya hai, aapne....
आपने सदविचार दोहरा कर अच्छा किया लेकिन ये कहावतें बन के रह गयीं हैं अब..
आपके सवाल के जवाब में- नहीं सुमन जी यहाँ स्थिति इतनी बुरी नहीं.. हाँ भ्रष्टाचार से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन वो ज़मीनी स्तर पर नहीं बड़े पैमाने पर बड़े लोगों द्वारा होती है कभी-कभी लेकिन जब वो पकड़े जाते हैं तो उनकी अपने यहाँ के नेताओं जैसी खातिरदारी नहीं होती.. प्रधानमंत्री को भी सबक सिखा दिया जाता है..
सुमन जी...
अवसरवादी लोगों के लिए आपकी कहावतें सर्वदा उचित हैं पर इसमे एक और संशोधन आवश्यक है....और वो है...."चापलूसी..." आज के इस युग मैं आप कितने भी योग्य न हों...पर अगर आपको आपकी लिखे गए मुहावरों के साथ चापलूसी नहीं आती होगी तो आप बेकार हैं.... हर मर्ज़ की एक दवा........"चापलूसी..."
बहुत ही सुन्दर आलेख और प्रशंसनीय प्रस्तुति...
दीपक....
काहे के सभ्य समाज की बात करें जी ..हम भौतिक वादी (अ)संस्कृति में रह रहे है शिक्षित हैं पर किसी अंधी दौड़ में शामिल गधों की तरह ....आपका लेख बहुत सराहनीय है बहुत दुःख होता है जब एक तरफ तो हम चाँद तारों से आगे की दुनिया की बात करते हैं ओर दूसरी तरफ मानवता को अपने ही पैरों से कुचल कर रख देते हैं,तालिबानीखाप पंचायतों द्वारा मासूम युवक युवतियों की हत्या कितनी बर्बर ओर क्रूर है ... देश की संसद ओर कई राज्यों की विधानसभाओं में सरे आम जन प्रतिनिधियों की खरीद फरोख्त जैसे दृश्य निश्चित रूप से किसी भी सवेदनशील नागरिक को सोचने परमजबूर कर देंगे..........
आप ने कितना सकारात्मक लिखा की मै भी पता नहीं क्या क्या सोचने पर मजबूर हो गया हूँ
एक टिप्पणी भेजें