वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (22-05-2014) को अच्छे दिन (चर्चा-1620) पर भी है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
11 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (22-05-2014) को अच्छे दिन (चर्चा-1620) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सरहद पार भी जिंदगी पनपती है !!
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति !!
वाह। लाजवाब।
Bahut Khub.
सरहद पार भी जिंदगी पनपती है दोनों और।
वाह...लाज़वाब सार्थक सोच...
बहोत खूब सुमन
पंछी और हवाओं को सरहदें कहाँ रोक पायीं हैं...
बहुत खूब
बेशक, इसके लिये हमें अपने अंतस की सीमायें लांघनी होंगी ! अपना आपा खोना होगा ! बेहतर सोच ! अच्छी कविता !
kya baat hai , bahut badhiya
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