एक नज़्म
अटकी है
अभी साँसों में
कुछ लफ्ज़
बह रहे
लहू में क़तरा – क़तरा ...
एक दर्द
ठहरा है
अभी ज़िस्म में
कुछ बरक
घुल रहे
रूह में रफ़्ता – रफ़्ता ....!!
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(साँसों से चल कर
...रूह में ज़ज्ब हुआ कुछ ..क्या कुछ ...नहीं जाना | जाना तो बस इतना कि लफ्ज़ झरते
रहे ...रूह भीगती रही ...दर्द घटता रहा ..नज़्म बढ़ती रही )
सु-मन