एक नज़्म
अटकी है
अभी साँसों में
कुछ लफ्ज़
बह रहे
लहू में क़तरा – क़तरा ...
एक दर्द
ठहरा है
अभी ज़िस्म में
कुछ बरक
घुल रहे
रूह में रफ़्ता – रफ़्ता ....!!
*****
(साँसों से चल कर
...रूह में ज़ज्ब हुआ कुछ ..क्या कुछ ...नहीं जाना | जाना तो बस इतना कि लफ्ज़ झरते
रहे ...रूह भीगती रही ...दर्द घटता रहा ..नज़्म बढ़ती रही )
सु-मन
17 comments:
बेहतरीन
सादर
Beautiful is all I m left with
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के - चर्चा मंच पर ।।
बहुत सुंदर ।
बहुत उम्दा शब्द चयन..... आखिरी के ये दो शब्द तो बस निशब्द कर गए .....!!
भावप्रणव उम्दा अभिव्यक्ति।
सुन्दर अहसास!
Bahut sundar!!!
भावों से भरी सुन्दर अभिव्यक्ति !
खूबशूरत एहसास
एक नज़्म अटकी है मेरे सांसों में
इक रूह भटकती है मेरे ख्वाबों में
आ के तुम ग़ज़ल मुकम्मल के दो
ज़िन्दगी उलझ न जाये अज़ाबों में
दर्द उतरता एराहे नज़्म में और जिस्म शांत हो जाए ... नज़्म की यही तो सफलता है ...
बहुत ख़ूबसूरत अहसास...
भावपूर्ण नज्म.....
बेहतरीन अलफ़ाज़
शानदार
बेहद ख़ूबसूरत...बधाई स्वीकारें...
एक नज़्म अटकी है मेरे सांसों में
इक रूह भटकती है मेरे ख्वाबों में
आ के तुम ग़ज़ल मुकम्मल के दो
ज़िन्दगी उलझ न जाये अज़ाबों में
खूबसूरत शब्द और भावों से सजी सुन्दर रचना
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