शनिवार, 6 सितंबर 2014

शब्द से ख़ामोशी तक ..अनकहा ‘मन’ का












एक नज़्म
अटकी है
अभी साँसों में
कुछ लफ्ज़
बह रहे
लहू में क़तरा क़तरा ...

एक दर्द   
ठहरा है
अभी ज़िस्म में
कुछ बरक
घुल रहे
रूह में रफ़्ता रफ़्ता ....!!
*****
(साँसों से चल कर ...रूह में ज़ज्ब हुआ कुछ ..क्या कुछ ...नहीं जाना | जाना तो बस इतना कि लफ्ज़ झरते रहे ...रूह भीगती रही ...दर्द घटता रहा ..नज़्म बढ़ती रही )

सु-मन 


15 comments:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन



सादर

Freespirit ने कहा…

Beautiful is all I m left with

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत उम्दा शब्द चयन..... आखिरी के ये दो शब्द तो बस निशब्द कर गए .....!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भावप्रणव उम्दा अभिव्यक्ति।

प्रभात ने कहा…

सुन्दर अहसास!

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

Bahut sundar!!!

सुधाकल्प ने कहा…

भावों से भरी सुन्दर अभिव्यक्ति !

Unknown ने कहा…

खूबशूरत एहसास

एक नज़्म अटकी है मेरे सांसों में
इक रूह भटकती है मेरे ख्वाबों में
आ के तुम ग़ज़ल मुकम्मल के दो
ज़िन्दगी उलझ न जाये अज़ाबों में

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दर्द उतरता एराहे नज़्म में और जिस्म शांत हो जाए ... नज़्म की यही तो सफलता है ...

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत अहसास...

Ranjana verma ने कहा…

भावपूर्ण नज्म.....

Yogi Saraswat ने कहा…

बेहतरीन अलफ़ाज़

Himkar Shyam ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत...बधाई स्वीकारें...

Yogi Saraswat ने कहा…

एक नज़्म अटकी है मेरे सांसों में
इक रूह भटकती है मेरे ख्वाबों में
आ के तुम ग़ज़ल मुकम्मल के दो
ज़िन्दगी उलझ न जाये अज़ाबों में
खूबसूरत शब्द और भावों से सजी सुन्दर रचना

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