वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
चाह मेरी हो जाऊँ इन बादलों सी स्याह मैं भर लूँ अपने भीतर खूब कालापन मुझमें समाहित हो तमाम रंग मेरे स्याह होने की गवाही दें लिखूँ मैं अपने भीतर की कालिख से एक प्रेमगीत !! सु-मन