मेरी सोच मेरे
अहसास की
सरहद नहीं कोई
लफ़्ज़ों को उड़ान
भरने दो
उस छोर तक
शायद कोई हद मिल
जाये इनको
और वापिस लौट
आएँ
तो.....
बता सकूँ
तुम्हें-कि
देखो हद ढूंढ ली
है मैंने भी
तुम्हारी तरह
पर....
जब तक वो लौट के
ना आएँ
जीने दो मुझको
इस सरहद से
अनभिज्ञ
और उड़ने दो
असीमित खयालों
के आसमां में
तुम संग
तुम्हारे बिना ...!!
सु-मन