मोहिनी सी सूरत , बोलते से नयन
सर पर मुकुट , कुंडल शोभित कर्ण
मुख पर है तेज़ , होंठ हैं मुस्कुराते
ऐसे मेरे राम लला , अवध में विराजे !!
सु-मन
वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
मोहिनी सी सूरत , बोलते से नयन
सर पर मुकुट , कुंडल शोभित कर्ण
मुख पर है तेज़ , होंठ हैं मुस्कुराते
ऐसे मेरे राम लला , अवध में विराजे !!
सु-मन
सावन की फुहार में जो भीगने लगे हैं
बेलपत्र की माला से जो सजने लगे हैं
दूध की धारा जिन पर है चढ़ने लगी
मंद मंद मुस्कुराते वो मेरे आदिशिव हैं !!
सु-मन