बात बहुत अजीब है पर सच्ची है। रिश्ते की गहराई में दुख भी उतना ही गहरा होता है। जितना गहरा रिश्ता उतना ही गहरा दुख। दिखता नहीं है , दबा होता है कहीं ...किसी कोने में। जैसे- जैसे रिश्ता गहराता जाता है दुख भी प्रकट होने लगता है धीरे-धीरे। रिश्ता जब धीरे-धीरे अपनी पकड़ पाने लगता है तभी असल में उस रिश्ते से हमारा परिचय होने लगता है,धुन्ध छंटने लगती है...सब खुलने लगता है तो जान पाते हैं कि जो था एक छलावा था , भ्रम था पर तब तक इंसान उस रिश्ते में कई पड़ाव जी चुका होता हैं। जब तक किसी रिश्ते से दुख नहीं जुड़ा वो रिश्ता है ही कहाँ...उसका अस्तित्व ही नहीं...वो रिश्ता अभी पका ही नहीं ..बीज अभी फूटा ही नहीं ..कोंपलें ही नही आई..खुशबू फैली ही नहीं तो रिश्ता है कहाँ कहीं नहीं। रिश्ता जब धीरे-धीरे परिपक्व होगा गहराएगा तभी तो अनुभूति होगी पहचान होगी उस रिश्ते से। साफ तस्वीर तो तभी नज़र आएगी। दिखेगा रिश्ता क्या कुछ समेटे था अपने अन्दर जो अभी तक गुम था अब सामने है।
रिश्ता जब बन्धता है तब इंसान एक तालाब की तरह होता है.....शांत है वो....अभी पूर्ण रूप से बन्धा नहीं है किसी से । उसने जाना ही नहीं कि रिश्ते का तानाबाना क्या है। वो बस शांत है । पर जब रिश्ता बन्ध गया तो वो उस रिश्ते में जीने लगता है साथ-साथ । तब उसकी स्थिति लगभग एक नदी की तरह होती है। कहीं पर शांत कहीं पर हलचल । मन किया तो चल दिये एक दो कदम रिश्ते में बन्धते हुए न मन किया तो ठहरे रहे । धीरे-धीरे इंसान गति पकड़ लेता है रिश्ते में डूबता जाता है। फिर वो स्थिति आ जाती है रिश्ता गहनता की चरम सीमा पर होता है तो इंसान की स्थिति एक समुद्र सी हो जाती है । बाहर से हलचल अन्दर से शांत । शायद अजीब सी लगती है ये बात कि जब इंसान अन्दर आत्मिक रूप से शांत है तो बाहरी हलचल से क्या फर्क पड़ेगा..पड़ेगा फर्क पड़ेगा । Our external feeling depends upon internal depth .बाहरी आवेश का जुड़ाव है कहीं अन्दर से । जो कुछ निकला बाहर वो कहीं न कहीं अन्दर दबा पड़ा है । अन्दर वो शांत रह कर सिवाए अपने को दुख नहीं तो क्या दे रहा है और बाहरी हलचल उस रिश्ते से मिले दुख का विरोधाभास नहीं तो क्या है ।
सु-मन
33 comments:
बहुत ही सुन्दर पोस्ट
बड़ी सच्ची बात कह दी आपने...यही अंतिम सत्य है....
सुन्दर रचना...
यह गहनता बाहरी, सान्सारिक- लिप्तता है, जो दुखों का मूल कारण है....वास्तविक गहनता तो अन्तर की, आत्मा की होती है जिससे कर्म व भाव में अलिप्तता की उत्पत्ति होती है और दुख की निव्रत्ति...तभी तो गीता में कहा गया---कर्मण्येवाधिकारास्ते मां फ़लेषु कदाचन... ’अन्तर के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे...’
इन्सानी रिश्तों का तानाबाना ही ऐसा होता है ! हम केवल शारिरिक रूप से ही नहीं, बल्कि रुहानी रूप से भी जुड़ जाते हैं !
जीवन एक सफर है और सफर में....।आपने अच्छा लिखा है।
really nice and aap font badi size ke rakkhegi to padhane me sabhi ko maza aaye ga and ek bat phuchna chahta hu, ki himalay ki side ki jo famle hoti hai unsabhi ke hair karli hote hai? and thanking u
यही अंतिम सत्य है....सुन्दर रचना|
yahi satya hai .
sundar post
बहुत अच्छा
मन-मस्तिश्क को समेटकर एकाग्रता से पदने योग्य कविताए। गहरी भावानुभुति।आभार!
एक अच्छा लेख
बेहतरीन अंदाज़ में जीवन की विवेचना
bhavpuran.....
इन्सानी रिश्तों की तासीर ही ऐसी होती है की हम आत्मिक रूप से भी जुड़ते चले जाते हैं
बहुत ही सुन्दर लेखन
पढना अच्छा लगा
आभार
wakai behtreen lekh .badhai sweekar karein
.http://amrendra-shukla.blogspot.com
Nice post.
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/01/blog-post_18.html
वाह बेहद गहरी बातें!
rishton par ek sashakt rachna.
jeevan aura rishton ki acchi vyaakhyaa
एक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
जीवन के सत्य को आपने बखूबी समझा है।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
बिलकुल सही कहा आपने। गहरी सोच। शुभकामनायें।
बहुत अच्छी बात कही आपने।
सादर
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‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
Truthful thoughts...
www.poeticprakash.com
gahan soch sachchai ko ukerti hui achchi prastuti.aabhar.
बहुत सुंदर
अच्छी पोस्ट
शुभकामनाएं
gahan soch liye bahut sunder aalekh...
रिश्तों का बहुत सटीक और बेबाक विश्लेषण...बहुत सुन्दर आलेख
सुन्दर गहरी बात ..
sundar prastuti.....!!
bahut accha likha hai. dukh ka karan bandhan hai ya gahrai? ya kain dabi viyog ki anubhuti.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन में शामिल किया गया है... धन्यवाद....
सोमवार बुलेटिन
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