एक खाली सुबह को अपनी बाहों में भरते हुए सूरज ने
कहा,जानती हो ! कल संध्या में जब मैं रात के आगोश में छिप रहा था तो मैं कितना
शांत अनुभव कर रहा था | इसलिए नहीं कि सारा दिन न चाहकर भी इस धरा पर आग बरसा कर
मैं थक चुका होता हूँ बल्कि इसलिए कि सारा दिन मेरी तपिश को सहन करती इस धरा को
राहत मिल जाती है | ये तरुवर ये पीली पड़ती इसकी डालियाँ , नदी के दामन में सिमटी
ये शिलाएं जब मेरी किरणों के स्पर्श से दहकने लगती हैं , ये पंछी पखेरू जब व्याकुल
हो अपने आशियाने में दुबक कर करते हैं इन्तजार मेरे छिपने का और जब कोई जिंदगी सो
जाती है गहरी नींद मौत के आगोश में तो कितना निरीह होता हूँ मैं उस समय | तब मेरे
भीतर के बिखराव से कितना टूट जाता हूँ मैं ये कोई क्या जाने | संध्या के आगमन में
जब इस सागर में दूर क्षितिज में विलीन हो जाता हूँ मैं तो दिन से विदा लेते हुए भी
आनंदित होता हूँ और नहीं चाहता फिर से उगना | पर..इस समय चक्र में बंधा मैं जकडा
हूँ इस समय के बाहुपाश में | इसलिए मेरी प्रिय सुबह , न चाह कर भी तुम्हे एक और
सुलगते दिन में बदलने फिर से तुम्हें अपनी बाहों मे भर रहा हूँ ...!!
हर रोज मिलन से सकूँ मिले जरुरी तो नहीं... सकूँ
गर हो तो मिलन में राहत हो या तपिश ...सब एक से महसूस होते हैं शायद !
(लिखने की कोई वजह नहीं, बस यूँ ही बेवजह)
सु-मन
33 comments:
बेवजह कुछ नहीं होता
……. कलम यूँ ही नहीं चलती और जब चलती है तो जो भी कह जाये उसकी वजह होती है - हाँ अब कौन समझता है,नहीं समझता - ये अलग बात है
बहुत खूबसूरत ख्याल
bahut hi sundar prastuti...........bahut bahut badhai...........kabhi meri achnaye bhi padhy.........
ज़रूरी नहीं कि कोई वजह होने पर ही कुछ लिखा जाय कुछ बातें बेवजह भी हो जाती हैं।
सादर
बेवजह ही सही,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,
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बेहद खूबसूरत...
हांजी रश्मि जी ,सही कहा आपने । बस समझने भर की देर होती है ... बेवजह लफ़्ज़ों का ताना बाना है बस । बजह खुद बन जाती है ।
शुक्रिया रश्मि जी
शुक्रिया ,हांजी जरुर देखूंगी ।
धन्यवाद ज्योति जी ,हांजी पढूंगी जरुर ।
बिल्कुल यशवंत ,सही कहा ।
आभार धीरेन्द्र जी ।
वाह अजय जी ,बहुत बहुत शुक्रिया ..इस जोरदार टिप्पणी के लिए ...जरुर आयेंगे ।
धन्यवाद वीणा जी
निःशब्द करती रचना दिल में जलन पैदा करती
par is samay chakra mein bandha main jakda hoon is samay ke bahupash mein...bohat khoob. lovely write-up
अपनी नैसर्गिक प्रवृत्तियों से परेशान भुवन भास्कर के मन की पीड़ा को बड़े प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुंदर !
सूरज की सोच को सुंदर शब्द दिये हैं ।
सुन्दर लेखन ! आपको बहुत बहुत बधाई !
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शुक्रिया
Thnx allot Aparna ji
पसंद करने के आभार साधना जी ।
शुक्रिया संगीता जी ।
धन्यवाद
bahut sundar.....
सुंदर भाव अभिव्यक्ति अंतिम पंक्तियों में शायद आप सुकून लिखना चाह रही थी पर सकूँ लिखा है यदि मेरी बात सही हो तो सुधार करलें उननीड है आप मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगी।
बहुत सुन्दर …
लिखना यूँ ही जारी रहे.
very nice!
Vinnie
मन के भीतर पनपते भाव को नई सुबह की ताजगी में क्या खूब उड़ेल दिया, जीवन में जैसे नयी जान आ गयी-----
लिखना जारी रहे
बहुत सुंदर
सादर
ज्योति
ना, ना, सूरज !
फिर आना।
तप कर ही
दुनियाँ को मैने
कुछ जाना।
बेवजह.....कभी कभी वजह ...बना देती है ...अच्छा लिखा है ....
वाह सुमन ...!!!
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