रविवार, 1 सितंबर 2013

लिखने की कोई वजह नहीं ,बस यूँ ही बेवजह

                            
             एक खाली सुबह को अपनी बाहों में भरते हुए सूरज ने कहा,जानती हो ! कल संध्या में जब मैं रात के आगोश में छिप रहा था तो मैं कितना शांत अनुभव कर रहा था | इसलिए नहीं कि सारा दिन न चाहकर भी इस धरा पर आग बरसा कर मैं थक चुका होता हूँ बल्कि इसलिए कि सारा दिन मेरी तपिश को सहन करती इस धरा को राहत मिल जाती है | ये तरुवर ये पीली पड़ती इसकी डालियाँ , नदी के दामन में सिमटी ये शिलाएं जब मेरी किरणों के स्पर्श से दहकने लगती हैं , ये पंछी पखेरू जब व्याकुल हो अपने आशियाने में दुबक कर करते हैं इन्तजार मेरे छिपने का और जब कोई जिंदगी सो जाती है गहरी नींद मौत के आगोश में तो कितना निरीह होता हूँ मैं उस समय | तब मेरे भीतर के बिखराव से कितना टूट जाता हूँ मैं ये कोई क्या जाने | संध्या के आगमन में जब इस सागर में दूर क्षितिज में विलीन हो जाता हूँ मैं तो दिन से विदा लेते हुए भी आनंदित होता हूँ और नहीं चाहता फिर से उगना | पर..इस समय चक्र में बंधा मैं जकडा हूँ इस समय के बाहुपाश में | इसलिए मेरी प्रिय सुबह , न चाह कर भी तुम्हे एक और सुलगते दिन में बदलने फिर से तुम्हें अपनी बाहों मे भर रहा हूँ ...!!

हर रोज मिलन से सकूँ मिले जरुरी तो नहीं... सकूँ गर हो तो मिलन में राहत हो या तपिश ...सब एक से महसूस होते हैं शायद !


(लिखने की कोई वजह नहीं, बस यूँ ही बेवजह)
सु-मन 

33 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बेवजह कुछ नहीं होता
……. कलम यूँ ही नहीं चलती और जब चलती है तो जो भी कह जाये उसकी वजह होती है - हाँ अब कौन समझता है,नहीं समझता - ये अलग बात है

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत खूबसूरत ख्‍याल

Unknown ने कहा…

bahut hi sundar prastuti...........bahut bahut badhai...........kabhi meri achnaye bhi padhy.........

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

ज़रूरी नहीं कि कोई वजह होने पर ही कुछ लिखा जाय कुछ बातें बेवजह भी हो जाती हैं।


सादर

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेवजह ही सही,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,

RECENT POST : फूल बिछा न सको

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बेहद खूबसूरत...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

हांजी रश्मि जी ,सही कहा आपने । बस समझने भर की देर होती है ... बेवजह लफ़्ज़ों का ताना बाना है बस । बजह खुद बन जाती है ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया रश्मि जी

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया ,हांजी जरुर देखूंगी ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

धन्यवाद ज्योति जी ,हांजी पढूंगी जरुर ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बिल्कुल यशवंत ,सही कहा ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

आभार धीरेन्द्र जी ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

वाह अजय जी ,बहुत बहुत शुक्रिया ..इस जोरदार टिप्पणी के लिए ...जरुर आयेंगे ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

धन्यवाद वीणा जी

Ramakant Singh ने कहा…

निःशब्द करती रचना दिल में जलन पैदा करती

Aparna Bose ने कहा…

par is samay chakra mein bandha main jakda hoon is samay ke bahupash mein...bohat khoob. lovely write-up

Sadhana Vaid ने कहा…

अपनी नैसर्गिक प्रवृत्तियों से परेशान भुवन भास्कर के मन की पीड़ा को बड़े प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुंदर !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सूरज की सोच को सुंदर शब्द दिये हैं ।

Unknown ने कहा…


सुन्दर लेखन ! आपको बहुत बहुत बधाई !

हिंदी
फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

Thnx allot Aparna ji

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

पसंद करने के आभार साधना जी ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

शुक्रिया संगीता जी ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

धन्यवाद

Ashish ने कहा…

bahut sundar.....

Pallavi saxena ने कहा…

सुंदर भाव अभिव्यक्ति अंतिम पंक्तियों में शायद आप सुकून लिखना चाह रही थी पर सकूँ लिखा है यदि मेरी बात सही हो तो सुधार करलें उननीड है आप मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगी।

Suman ने कहा…

बहुत सुन्दर …

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

लिखना यूँ ही जारी रहे.

Unknown ने कहा…

very nice!
Vinnie

Jyoti khare ने कहा…

मन के भीतर पनपते भाव को नई सुबह की ताजगी में क्या खूब उड़ेल दिया, जीवन में जैसे नयी जान आ गयी-----

लिखना जारी रहे
बहुत सुंदर

सादर
ज्योति





देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

ना, ना, सूरज !
फिर आना।

तप कर ही
दुनियाँ को मैने
कुछ जाना।

प्रियंका.... ने कहा…

बेवजह.....कभी कभी वजह ...बना देती है ...अच्छा लिखा है ....

Saras ने कहा…

वाह सुमन ...!!!

एक टिप्पणी भेजें

www.hamarivani.com
CG Blog www.blogvarta.com blogavli
CG Blog iBlogger