वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
शनिवार, 6 सितंबर 2014
शब्द से ख़ामोशी तक ..अनकहा ‘मन’ का
एक नज़्म
अटकी है
अभी साँसों में
कुछ लफ्ज़
बह रहे
लहू में क़तरा – क़तरा ...
एक दर्द
ठहरा है
अभी ज़िस्म में
कुछ बरक
घुल रहे
रूह में रफ़्ता – रफ़्ता ....!!
*****
(साँसों से चल कर
...रूह में ज़ज्ब हुआ कुछ ..क्या कुछ ...नहीं जाना | जाना तो बस इतना कि लफ्ज़ झरते
रहे ...रूह भीगती रही ...दर्द घटता रहा ..नज़्म बढ़ती रही )
सु-मन
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