एक कहानी होती है । जिसमें खूब पात्र होते हैं ।एक निश्चित समय में दो पात्रों के बीच वार्तालाप होता है । दो पात्र कोई भी वो दो होतें हैं जो कथानक के हिसाब से तय होते हैं । कथानक कौन लिखता है उन किसी को नहीं मालूम । मालूम है तो बस इतना कि उस लिखे को मिटाया नहीं जा सकता । प्रतिपल लिखे को आत्मसात कर कहानी को आगे बढ़ाते जाते हैं । इस कहानी में मध्यांतर भी नहीं होता कि कोई सोचे जो पीछे घटित हुआ उसके अनुसार आगे क्या घटित होगा । बस होता जाता है सब एक सुव्यवस्थित तरीके से । कहानी कभी खत्म नहीं होती ।हाँ बस पात्र बदलते रहते हैं ।
वार्तालाप खत्म होने पर भी पात्र इकहरा नहीं होता,जाने क्यूँ । दोहरापन हमेशा लचीला होता है शायद इसलिए !!
सु-मन
6 comments:
हर कहानी में दो कहानियां रेल की पटरी सी साथ साथ चलती हैं. एक जो तय है, दूसरी जो 'तय के हिसाब से' आप तय करते हैं. आशय ये कि आपको समुचित आजादी होती है... अपनी तरह जीने की...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-05-2015) को बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं; चर्चा मंच 1967 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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शब्दों में ढली एक कमाल की सोच
जिंदगी भी तो कहानी ही है ... वार्तालाप और कभी कभी दोहरापन भी ...
सुन्दर रचना
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
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