मंगलवार, 26 मई 2015

सीले एहसास














मेरे हिस्से के उजाले में
बिखेर दो तुम
एक धूप का टुकड़ा

मेरी पलकों की नमी से
बरसा दो तुम
अपने नाम के बादल

कि
एक मुद्दत से
एहसास में पड़ी सीलन
भिगो कर अच्छे से सूखा दूँ !!


सु-मन 




14 comments:

Sadhana Vaid ने कहा…

वाह ! बहुत ही सुन्दर !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर ।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

गहरे ज़ज़्बात। बहुत बढ़िया सुमन जी ...

sochtaahoon... ने कहा…

अच्छी कविता

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जयंती - प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर
उत्तर दो हे सारथि !

रश्मि शर्मा ने कहा…

वाह.....बहुत सुंदर भाव

Asha Joglekar ने कहा…

Wah, see last ko bhigakar fir sukhana.

रचना दीक्षित ने कहा…

बहत गहरे अहसास

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहतरीन

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत सुन्दर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वह .. गहरे जज्बात को मिलते शब्द ...

Unknown ने कहा…

सुंदर एहसास ,अच्छी रचना

Dr. Rajeev K. Upadhyay ने कहा…

कि
एक मुद्दत से
एहसास में पड़ी सीलन
भिगो कर अच्छे से सूखा दूँ !!
वाह क्या खुब कहा है आपने। एहसास की सीलन को भिगोकर सुखाने की तमन्ना बहुत खुब की है। ऐसी ही उँची उड़ान भरते रहिए।
नज़र से नज़र की बात

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