मंगलवार, 5 मई 2015

जिंदगी एक कहानी ही तो है

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एक कहानी होती है । जिसमें खूब पात्र होते हैं ।एक निश्चित समय में दो पात्रों के बीच वार्तालाप होता है । दो पात्र कोई भी वो दो होतें हैं जो कथानक के हिसाब से तय होते हैं । कथानक कौन लिखता है उन किसी को नहीं मालूम । मालूम है तो बस इतना कि उस लिखे को मिटाया नहीं जा सकता । प्रतिपल लिखे को आत्मसात कर कहानी को आगे बढ़ाते जाते हैं । इस कहानी में मध्यांतर भी नहीं होता कि कोई सोचे जो पीछे घटित हुआ उसके अनुसार आगे क्या घटित होगा । बस होता जाता है सब एक सुव्यवस्थित तरीके से । कहानी कभी खत्म नहीं होती ।हाँ बस पात्र बदलते रहते हैं ।
वार्तालाप खत्म होने पर भी पात्र इकहरा नहीं होता,जाने क्यूँ । दोहरापन हमेशा लचीला होता है शायद इसलिए !!


सु-मन
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