वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
12 comments:
जमाना तो खुद डूबा हुआ है दर्द में कई जमाने हो गये
जमाने भर के दर्द हैं जमाते जमाते जमाना बीत जाता है ।
:)
बढ़िया दर्द है ।
Nice one.
जा तन लागि सो जाने ....बहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह...बहुत उम्दा
Waah
वाह! चित्र के लिए भी वाह! वाह!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 9 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर बात। सस्नेह
बहुत सुन्दर बात। सस्नेह
बहुत ही सच बात । सस्नेह
बहुत ही सच बात । सस्नेह
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