गुरुवार, 16 जुलाई 2015

हज़ में बरसता सावन

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बरस रहा है आज सावन 
हज़ के इस पाक महीने में 
सज गए हैं आज शिवालय 
इबादत हो रही मदीने में !!

सु-मन 

(चित्र : सुबह ऑफिस आते हुए बरसते सावन का नज़ारा )

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

चाह मेरी

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चाह मेरी
हो जाऊँ इन बादलों सी 
स्याह मैं 
भर लूँ अपने भीतर 
खूब कालापन 
मुझमें समाहित हो 
तमाम रंग 
मेरे स्याह होने की गवाही दें 
लिखूँ मैं 
अपने भीतर की कालिख से 
एक प्रेमगीत !!

सु-मन 









गुरुवार, 18 जून 2015

हसरतों की बारिश

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भर भर 
खाली होता गया 
ख्वाहिशों का मयखाना 

बूँद बूँद 
अश्क होती गयी 
हसरतों की बारिश !!


सु-मन 

मंगलवार, 26 मई 2015

सीले एहसास

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मेरे हिस्से के उजाले में
बिखेर दो तुम
एक धूप का टुकड़ा

मेरी पलकों की नमी से
बरसा दो तुम
अपने नाम के बादल

कि
एक मुद्दत से
एहसास में पड़ी सीलन
भिगो कर अच्छे से सूखा दूँ !!


सु-मन 




मंगलवार, 5 मई 2015

जिंदगी एक कहानी ही तो है

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एक कहानी होती है । जिसमें खूब पात्र होते हैं ।एक निश्चित समय में दो पात्रों के बीच वार्तालाप होता है । दो पात्र कोई भी वो दो होतें हैं जो कथानक के हिसाब से तय होते हैं । कथानक कौन लिखता है उन किसी को नहीं मालूम । मालूम है तो बस इतना कि उस लिखे को मिटाया नहीं जा सकता । प्रतिपल लिखे को आत्मसात कर कहानी को आगे बढ़ाते जाते हैं । इस कहानी में मध्यांतर भी नहीं होता कि कोई सोचे जो पीछे घटित हुआ उसके अनुसार आगे क्या घटित होगा । बस होता जाता है सब एक सुव्यवस्थित तरीके से । कहानी कभी खत्म नहीं होती ।हाँ बस पात्र बदलते रहते हैं ।
वार्तालाप खत्म होने पर भी पात्र इकहरा नहीं होता,जाने क्यूँ । दोहरापन हमेशा लचीला होता है शायद इसलिए !!


सु-मन

रविवार, 19 अप्रैल 2015

बीती शाम

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भरा भरा पर खाली खाली (घर की छत से दिखता आसमां)

















बीती शाम
हवा ने एक चुटकी काटी
और नम पलकों से
चुरा ले गई कुछ बूँदें
खुश्क आँखें देखती रही
उन्हें जाते , दूर कहीं
बाद इसके –
आसमां के ज़िस्म से
उतरने लगा लिबास कोई
रूह मेरी
देर तक पैरहन एक सिलती रही !!


सु-मन 











मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

सजदा

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दो बूँद अश्क पीकर 
पाक हुई रूह 
खाली दामन को 
काँटों से भर 
आबाद हुआ ज़िस्म 

आज फिर-
जिंदगी की मज़ार पर 
अधूरे अरमानों ने सजदा किया !!


सु-मन 
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