वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
मंगलवार, 23 दिसंबर 2014
सोमवार, 24 नवंबर 2014
सोमवार, 13 अक्टूबर 2014
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
शनिवार, 6 सितंबर 2014
शब्द से ख़ामोशी तक ..अनकहा ‘मन’ का
एक नज़्म
अटकी है
अभी साँसों में
कुछ लफ्ज़
बह रहे
लहू में क़तरा – क़तरा ...
एक दर्द
ठहरा है
अभी ज़िस्म में
कुछ बरक
घुल रहे
रूह में रफ़्ता – रफ़्ता ....!!
*****
(साँसों से चल कर
...रूह में ज़ज्ब हुआ कुछ ..क्या कुछ ...नहीं जाना | जाना तो बस इतना कि लफ्ज़ झरते
रहे ...रूह भीगती रही ...दर्द घटता रहा ..नज़्म बढ़ती रही )
सु-मन
Labels:
अनकहा,
दर्द,
बेआवाज़ लफ्ज़,
मन
शुक्रवार, 1 अगस्त 2014
मंगलवार, 15 जुलाई 2014
शनिवार, 28 जून 2014
शुक्रवार, 13 जून 2014
बुधवार, 21 मई 2014
बुधवार, 30 अप्रैल 2014
गहनता ही दुख का मूल कारण
बात बहुत अजीब है पर सच्ची है। रिश्ते
की गहराई में दुख भी उतना ही गहरा होता है। जितना गहरा रिश्ता उतना ही गहरा दुख | दिखता
नहीं है पर दबा होता है कहीं, किसी कोने में | जैसे- जैसे रिश्ता गहराता जाता है
दुख भी प्रकट होने लगता है धीरे-धीरे | रिश्ता जब धीरे-धीरे अपनी पकड़ पाने लगता है
तभी असल में उस रिश्ते से हमारा परिचय होने लगता है , धुन्ध छंटने लगती है , सब
खुलने लगता है तो जान पाते हैं कि जो था एक छलावा था , भ्रम था पर तब तक इंसान उस
रिश्ते में कई पड़ाव जी चुका होता हैं | जब तक किसी रिश्ते से दुख नहीं जुड़ा वो
रिश्ता है ही कहाँ , उसका अस्तित्व ही नहीं , वो रिश्ता अभी पका ही नहीं , बीज अभी
फूटा ही नहीं ,कोंपलें ही नही आई , खुशबू फैली ही नहीं तो रिश्ता है कहाँ.. कहीं
नहीं | रिश्ता जब धीरे-धीरे परिपक्व होगा गहराएगा तभी तो अनुभूति होगी पहचान होगी
उस रिश्ते से | साफ तस्वीर तो तभी नज़र आएगी | दिखेगा रिश्ता क्या कुछ समेटे था
अपने अन्दर जो अभी तक गुम था अब सामने है |
रिश्ता जब बन्धता है तब इंसान
एक तालाब की तरह होता है ,शांत है वो , अभी पूर्ण रूप से बन्धा नहीं है किसी से | उसने
जाना ही नहीं कि रिश्ते का तानाबाना क्या है | वो बस शांत है | पर जब रिश्ता बन्ध
गया तो वो उस रिश्ते में जीने लगता है साथ-साथ | तब उसकी स्थिति एक नदी की तरह
होती है , कहीं पर शांत कहीं पर हलचल | मन किया तो चल दिये एक दो कदम रिश्ते में
बन्धते हुए न मन किया तो ठहरे रहे | धीरे-धीरे इंसान गति पकड़ लेता है रिश्ते में
डूबता जाता है | फिर वो स्थिति आ जाती है रिश्ता गहनता की चरम सीमा पर होता है तो
इंसान की स्थिति एक समुद्र सी हो जाती है | बाहर से हलचल अन्दर से शांत | अजीब सी
लगती है ये बात शायद कि जब इंसान अन्दर आत्मिक रूप से शांत है बाहरी हलचल से क्या फर्क पड़ेगा | फर्क पड़ता है
| Our external feeling depends upon internal depth . बाहरी आवेश का जुड़ाव है
कहीं अन्दर से , जो कुछ निकला बाहर वो कहीं न कहीं अन्दर दबा पड़ा है | अन्दर वो
शांत रह कर सिवाए अपने को दुख नहीं तो क्या दे रहा है और बाहरी हलचल उस रिश्ते से
मिले दुख का विरोधाभास नहीं तो क्या है ||
सु-मन
Labels:
गहनता ही दुख का मूल कारण
शनिवार, 22 मार्च 2014
सु-मन की पाती
ऐ मेरे दोस्त..लफ्ज़
सुबह से लेकर शाम तक की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारावास में भूत के बिछौने पे अधलेटी से स्मृतियाँ हैं । वर्तमान की दीवार पर छत से सटे हुए इकलौते रोशनदान से बाद दोपहर भविष्य के धूमिल कण झिलमिलाते हैं । सलाखों के उस पार अनेक रोशनियाँ हैं जिनमें अनेक रंगीनियाँ हैं सतरंगी इन्द्रधनुष से महकता खुला आकाश और इस पार मैं हूँ उस रोशनदान से दिखता मेरा सिमटा आकाश के जिसमें एक नहीं अनगिनत इन्द्रधनुष दिखते हैं मुझको और मुझे सराबोर कर देते हैं अपनी महक से और खिल उठती हूँ मैं सुमन सी जब तुम मुझमे समाहित हो उतर आते हो पन्नों पर । मुझे ये कारावास प्रिय है और तुम्हारा सानिध्य भी !!
सोमवार, 20 जनवरी 2014
सदस्यता लें
संदेश (Atom)