वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
सार्थक प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-01-2015) को "सियासत क्यों जीती?" (चर्चा - 1862) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ... सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
12 comments:
बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी...
सुन्दर और सटीक सुमन जी
सुन्दर
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-01-2015) को "सियासत क्यों जीती?" (चर्चा - 1862) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut sunder
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
आरजुओं का अलाव धीरे धीरे ही जलता है ... उसके साथ दिल भी जल जाता है ...
Waah..... Bahut Umda
kya baat..!!...jabardast bhaav...
अतिसुन्दर लेख
http://merisyahikerang.blogspot.in/2013_06_01_archive.html
कुछ पंक्तियाँ मेरे द्वारा ।
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