शनिवार, 17 जनवरी 2015

आरजूओं का अलाव

















पुर्ज़ा पुर्ज़ा कर दिए हैं एहसास 
सूखे रिश्ते की पपड़ियों को 
कर दिया है इक्कट्ठा 

देखो ! जलने लगा है 
आरजूओं का अलाव धुआँ धुआँ !!


सु-मन 

12 comments:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी...

Yogi Saraswat ने कहा…

सुन्दर और सटीक सुमन जी

Manoj Kumar ने कहा…

सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-01-2015) को "सियासत क्यों जीती?" (चर्चा - 1862) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Meena C hopra ने कहा…

bahut sunder

विभूति" ने कहा…

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

Vaanbhatt ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति...

Shanti Garg ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आरजुओं का अलाव धीरे धीरे ही जलता है ... उसके साथ दिल भी जल जाता है ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Waah..... Bahut Umda

Unknown ने कहा…

kya baat..!!...jabardast bhaav...

Madhulika Patel ने कहा…

अतिसुन्दर लेख
http://merisyahikerang.blogspot.in/2013_06_01_archive.html
कुछ पंक्तियाँ मेरे द्वारा ।

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