मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

सजदा













दो बूँद अश्क पीकर 
पाक हुई रूह 
खाली दामन को 
काँटों से भर 
आबाद हुआ ज़िस्म 

आज फिर-
जिंदगी की मज़ार पर 
अधूरे अरमानों ने सजदा किया !!


सु-मन 

13 comments:

बेनामी ने कहा…

lovely... :-)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... अधूरे अरमान भी तो सांस लेते हैं ...

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत खूब सुमन जी

Kailash Sharma ने कहा…

वाह...दिल को छूती बहुत भावमयी रचना...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-04-2015) को "सहमा हुआ समाज" { चर्चा - 1941 } पर भी होगी!
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया :)

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही कोमल भावपूर्ण रचना..

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब
मंगलकामनाएं आपको !

Sanju ने कहा…

सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।

Onkar ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ

रश्मि शर्मा ने कहा…

Waah..bahut khoob likha

Sanju ने कहा…

सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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