वजूद की तलाश में .. अतीत की कलियां जब मुखर उठती हैं .. खिलता है ‘सुमन’ वर्तमान के आगोश में कुछ पल .. दम तोड़ देती हैं पंखुड़ियां .. भविष्य के गर्भ में .. !!
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-04-2015) को "सहमा हुआ समाज" { चर्चा - 1941 } पर भी होगी! -- सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
13 comments:
lovely... :-)
बहुत खूब ... अधूरे अरमान भी तो सांस लेते हैं ...
बहुत खूब सुमन जी
वाह...दिल को छूती बहुत भावमयी रचना...
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-04-2015) को "सहमा हुआ समाज" { चर्चा - 1941 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया :)
बहुत सुन्दर...
बहुत ही कोमल भावपूर्ण रचना..
बहुत खूब
मंगलकामनाएं आपको !
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
सुन्दर पंक्तियाँ
Waah..bahut khoob likha
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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