शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

पहचान
















आईना रोज़ ढूँढता है मुझमें मेरी पहचान 
मैं देख कई अक्स अपने सोच में पड़ जाता हूँ !!

सु-मन 

6 comments:

कविता रावत ने कहा…

बहुत खूब!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-12-2015) को "सहिष्णु देश का नागरिक" (चर्चा अंक-2188) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Girish Billore Mukul ने कहा…

waah

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब ...

जसवंत लोधी ने कहा…

काश गर हम आईने होते ।
हमारी सूरत मे देखती 'नारीयॉ अपनी मूरत'
हम खीचते सुंदर सूरतो का अक्स ।
हम एसे नक्शा नफीज होते ।काश गर---------------

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खुद से खुद की पहचान भी आइना करवा देता है ...

एक टिप्पणी भेजें

www.hamarivani.com
CG Blog www.blogvarta.com blogavli
CG Blog iBlogger